Friday, 25 August 2017

जय श्रीकृष्ण

आक्रान्तं मरणेन जन्म जरसा चात्युज्ज्वलं यौवनं,
संतोषो धनलिप्स्या शमसुखं प्रौढाङ्गनाविभ्रमै:।
लोकैर्मत्सरिभिर्गुणा वनभुवो व्यालैनृपा दुर्जनै-
रस्थैर्येण विभूतयोऽप्युपहता ग्रस्तं न किं केन वा ।।

जीवन को मृत्यु ने घेर रखा है, यौवन को बुढ़ापे ने, संतोष को लोभ ने, इन्द्रिय-निग्रह से होने वाले सुख को विषयों ने, सद्गुणों को ईर्ष्या ने, जंगलों को हिंसक जानवरों ने, राजाओं को दुष्ट लोगों ने और धन-दौलत को अस्थिरता ने घेरा हुआ है।
इस प्रकार सभी वस्तुएँ किसी न किसी के द्वारा आक्रान्त या ग्रसित हैं, एक वैराग्य ही निरापद है जो किसी से जकड़ा हुआ नहीं है ।🙏

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