Saturday, 26 August 2017


"असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।।                                                                 " हे महाबाहो ! नि:संदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है ; परन्तु हे कुंती पुत्र अर्जुन ! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है ।"
मन को किसी लक्ष्य - विषय में तदाकार करने के लिए , उसे अन्य विषयों से खींच - खींचकर बार - बार उस विषय में लगाने के लिए किये जाने वाले प्रयत्न का नाम ही अभ्यास है ।

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