दारिद्र्यात्पुरुषस्य बांधवजनो वाक्ये न संतिष्ठते
सुस्निग्धाः विमुखीभवन्ति सुहृदः स्फारीभवन्त्यापदः ।
सत्त्वं ह्रस्वमुपैति शीलशशिनः कान्तिः परिम्लायते
पापं कर्म च यत्परैरपि कृतं तत्तस्य सम्भाव्यते ।।
यदि कोई गरीब है, तो उसके रिश्तेदार उसके शब्दों को ध्यान नहीं देते हैं, यहां तक कि प्रेमी मित्र उसे उपेक्षित करते हैं, उसका दुर्भाग्य फैल जाता है, उसकी शारीरिक और मानसिक शक्ति कम हो जाती है, उसके अच्छे आचरण के चाँद पीले हो जाते हैं और दूसरों के द्वारा किए गए गलतियों मे भी उसे फंसाया जाता है ।
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