तृणादपि लघुस्तूलः तूलादपि च याचकः । वायुना किं न नीतोऽसौ मामयं प्राथयेदिति ॥
तिन्के से हल्का रु है, और रु से भी हल्का याचक है । पर, याचक को वायु क्यों नहीं खींच जाता ? (इस लिये कि उसे डर है) कहीं मुज से भी माग लेगा तो !
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