अजरामरवत्प्राज्ञो विद्यामर्थं च चिन्तयेत् | गृहीत इव केशेषु, मृत्युना धर्ममाचरेत्||
बुद्धिमान् व्यक्ति को चाहिए कि विद्या और धन का संचय करते समय अपने को अजर तथा अमर समझे परन्तु यह सोचकर कि मृत्यु ने मुझे सिर के बालों से पकड़ रखा है, सदा धर्म का ही आचरण करे| भावार्थ यह है कि धर्म का मार्ग कभी नहीं छोड़ना चाहिए; न जाने कब मृत्यु आकर दबोच ले|
The wise person should know that while acquiring knowledge and wealth, he can understand himself and his ancestors, but thinking that death has caught me from the hair of my head, always conduct the religion. The realization is that the path of religion should never be left; Do not know when I die.
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