Tuesday 30 May 2017

दानेन तुल्यो विधिरास्ति नान्यो लोभोच नान्योस्ति रिपुः पृथिव्याः।
विभुषणं शिलसमं च नान्यत्  संतोषतुल्यं धनमस्ति नान्यत् ।
दान के समान कोई यज्ञ नहीं, लालच के समान कोई शत्रु नहीं, चरित्र के समान कोई आभूषण नहीं, और संतोष के समान कोई  धन नहीं।
No ritual as sacred as charity. No enemy like greed. No ornament like chastity. No wealth like contentment. 

No comments:

Post a Comment