Sunday 25 June 2017

सानन्दं सदनं सुताश्च सुधियः  कान्ता प्रियभाषिणी।
सन्मित्रं सधनं स्वयोषिति रतिः चाज्ञापराः सेवकाः ।।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्ठान्नपानं गृहे।
साधोः सङ्गमुपासते हि सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः ॥

घर में आनंद हो, पुत्र बुद्धिमान हो, पत्नी प्रिय बोलनेवाली हो, अच्छे मित्र हों , धन हो, पति-पत्नी में प्रेम हो, सेवक आज्ञापालक हो, जहाँ अतिथि सत्कार हो, ईशपूजन होता हो, रोज अच्छा भोजन बनता हो, और सत्पुरुषों का संग होता हो – ऐसा गृहस्थाश्रम धन्य है ।

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