सानन्दं सदनं सुताश्च सुधियः कान्ता प्रियभाषिणी।
सन्मित्रं सधनं स्वयोषिति रतिः चाज्ञापराः सेवकाः ।।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्ठान्नपानं गृहे।
साधोः सङ्गमुपासते हि सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः ॥
घर में आनंद हो, पुत्र बुद्धिमान हो, पत्नी प्रिय बोलनेवाली हो, अच्छे मित्र हों , धन हो, पति-पत्नी में प्रेम हो, सेवक आज्ञापालक हो, जहाँ अतिथि सत्कार हो, ईशपूजन होता हो, रोज अच्छा भोजन बनता हो, और सत्पुरुषों का संग होता हो – ऐसा गृहस्थाश्रम धन्य है ।
No comments:
Post a Comment