दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययालंकृतोsपि सन। मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयंकर।।
दुर्जन विद्यावान भी हो, परंतु उसे छोड़ देना चाहिये, क्योंकि रत्न से शोभायमान सपं क्या भयंकर नहीं होता है
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