न देवाय न विप्राय न बंधुभ्यो न चात्मने। कृपणस्य धनं याति वह्मितस्करपार्थिवै:।।
जो मनुष्य धन को देवता के, ब्राह्मण के तथा भाई बंधु के काम में नहीं लाता है, उसे कृपण का धन तो जल जाता है या चोर चुरा ले जाते हैं अथवा राजा छीन लेता है।
No comments:
Post a Comment