एकः शत्रु र्न द्वितीयोऽस्ति शत्रुः ।अज्ञानतुल्यः पुरुषस्य राजन् ॥ हे राजन् ! इन्सान का एक हि शत्रु है, अन्य कोई नहीं; वह है अज्ञान ।
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