Monday 17 July 2017

सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य भिषग् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः ॥

कांरवाँ प्रवासी का मित्र है, पत्नी गृह में रहेनेवाले की मित्र है, वैद्य रोगी का और दान मरते हुए मनुष्य का (या मर्त्य मनुष्य का) मित्र है ।

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