हीयते हि मतिस्तात हीनैः सह समागमात् । समैश्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टिताम् ॥
हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है , समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है ।
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