Monday 17 July 2017

गर्जित्वा बहुदूरमुन्नति-भृतो मुञ्चन्ति मेघा जलम्
भद्रस्यापि गजस्य दानसमये सञ्जायतेऽन्तर्मदः । पुष्पाडम्बर यापनेन ददति प्रायः फलानि द्रुमाः
नो छेको नो मदो न कालहरणं दान प्रवृतौ सताम् ॥

उन्नत ऐसे बादल, दूर से गर्जना करके पानी देते हैं, भद्र हाथी में भी दान के समय (गण्डस्थल में रस उत्पन्न होते वक्त) मद उत्पन्न होता है, वृक्ष भी पुष्पों का आडंबर दूर करके फल देते हैं; अर्थात् दानप्रवृत्त होने में सज्जनों को दंभ, घमंड या कालहरण होते नहीं ।

No comments:

Post a Comment