सुखस्य दुःखस्य न कोSपिदाता
परोददातीति कुबुद्धिरेषा ।
अहं करोमीति वृथाSभिमानः
स्वकर्मसूत्र ग्रथितो हि लोक:।।
हमारे सुख-दुख दूसरों के दिये हुए हैं, ये समझना गलत है । ये भी समझना गलत है कि हम ही सब कार्य करते हैं । सत्यता ये है कि सभी लोग सुख या दुःख के रूप में अपने ही किये हुए अच्छे या बुरे कर्मों के फल भुगतते हैं।
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