अनवस्थितकार्यस्य न जने न वने सुखम्। जने दहति संसर्गो वने सङ्गविवर्जनम्।।
- अव्यवस्थित कार्य करनेवाले को न तो समाज में सुख मिलता है और न वन में। समाज में लोगों का साथ उसे दुःख देता है और वन में अकेलापन दुःख देता है।
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