Saturday 9 September 2017

अनवस्थितकार्यस्य न जने न वने सुखम्।
जने दहति संसर्गो वने सङ्गविवर्जनम्।।

    - अव्यवस्थित कार्य करनेवाले को न तो  समाज में सुख मिलता है और न वन में। समाज में लोगों का साथ उसे दुःख देता है और वन में अकेलापन दुःख देता है।

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