दानोपभोगरहिता दिवसा यस्य यान्ति वै। स कर्मकारभस्रेव श्वसन्नपि न जीवति।। दान और भोग के बिना जिसके दिन जाते हैं, वह लुहार की धोंकनी के समान सांस लेता हुआ भी मरे के समान है।
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