अरक्षितं तिष्ठति दैवरक्षितं
सुरक्षितं दैवहतं विनश्यति।
जीवत्यनाथोsपि वने विसर्जितः।
कृतप्रयत्नोsपि गृहे न जीवति।।
दैव से रक्षा किया हुआ, बिना रक्षा के भी ठहरता है और अच्छी तरह रक्षा किया हुआ भी, दैव का मारा हुआ नहीं बचता है,
जैसे वन में छोड़ा हुआ सहायताहीन भी जीता रहता है, घर पर कई उपाय करने से भी नहीं जीता है।
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Monday 4 September 2017
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