जरा रूपं हरति, धैर्यमाशा
मॄत्यु:प्राणान् , धर्मचर्यामसूया ।
क्रोध: श्रियं शीलमनार्यसेवा
ह्रियं काम: , सर्वमेवाभिमान: ॥
वृद्धावस्था से रूप का हरण होता है, आशा एवम् तॄष्णा से धैर्य का, मॄत्यु से प्राण का हरण होता है । मत्सर, ईर्ष्या से धर्माचरण का, क्रोध से संपत्ति का तथा दुष्टों की सेवा करने से शील का नाश होता है। काम वासना से लज्जा का और अभिमान से तो सभी गुणों का अन्त हो जाता है ।
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