असङ्कल्पितमेवेह यदकस्मात्प्रवर्तते । निवर्त्यारम्भमारब्धं ननु दैवस्य कर्म तत् ।।
जिसे करने के लिये कभी विचार भी न किया हो और वह अचानक हो जाये और जिस काम को करने का विचार करो और वह न हो, बस इसी को दैव का कर्म समझना चाहिये ।
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