Saturday 18 November 2017


माभूत्सज्जनयोगो  यदि  योगो मा पुनः स्नेहो,|
स्नेहो यदि विरहो मा यदि विरहो जीविता आशा का।|

सज्जन व्यक्तियों से निकट  संपर्क मत करो, और यदि करो  भी तो फिर उनसे स्नेह मत करो। यदि उनसे स्नेह हो जाय तो उनसे सम्बन्ध विच्छेद न करो, क्योंकि यदि ऐसा हो जाय तो फिर जीवित रहने की आशा करना व्यर्थ है।

दुष्ट और सज्जन व्यक्तियों की तुलना करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है कि -
मिलत एक दारुण दुःख देहीं।
विछुरत एक प्राण हर लेहीं।

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