Monday 26 June 2017

सकलापि कला कलावतां
विकला धर्मकलां विना खलु ।
सकले नयने वृथा यथा
तनुभाजां कनीनिकां विना ॥

जैसे इन्सान की आँखें कीकी के बिना निस्तेज है, वैसे हि धर्म के बिना सभी कला निस्तेज है |

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