सकलापि कला कलावतां विकला धर्मकलां विना खलु । सकले नयने वृथा यथा तनुभाजां कनीनिकां विना ॥
जैसे इन्सान की आँखें कीकी के बिना निस्तेज है, वैसे हि धर्म के बिना सभी कला निस्तेज है |
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