Sunday 23 July 2017

वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं
द्रुमालयं पक्कफलाम्बुभोजनम्।
तृणानि शय्या परिधानवल्कलं,
न बंधुमध्ये धनहीनजीवनम्।।

सिंह और हाथियों से भरे हुए वन के नीचे रहना, पके हुए कंद मूल फल खाकर जल पान करना तथा घास के बिछौने पर सोना और छाल के वस्र पहनना अच्छा है, पर भाई बंधुओं के बीच धनहीन जीना अच्छा नहीं है।

No comments:

Post a Comment