शत्रुणा न हि संदध्यात सुश्लिष्टेनापि संधिना। सुतप्तमपि पानीयं शमयत्येव पावकम्।।
और यह कहा है कि वैरी चाहे जितना मीठा बन कर मेल करे, परंतु उसके साथ मेल न करना चाहिये, क्योंकि पानी चाहे जितना भी गरम हो आग को बुझा ही देता है।
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