Tuesday 5 September 2017

किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च ।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥

What else can be said, one who recite the stotram, looks like Lord Narshimha and whatever he wishes in his mind is accomplished, there is no doubt about this truth.

बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों पढने से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु की कृपा के  बिना मिलना दुर्लभ है ।

बालमंदिर  से लेकर प्रवर्तमान समय तक के मेरे सभी वंदनीय गुरुजनो के चरणों मे कोटि कोटि वंदन । सदैव आपकी कृपा का अभ्यर्थी।
                               

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